7 Interesting Insights into Pujya Bhaishri Rameshbhai Oza’s Life Journey
– जीवन यात्रा में से सात रोचक पल । सत्य के प्रयोग पूज्य भाईश्री के संग ।
1) Where it all began…..
पूज्य भाईश्री की आयु जब केवल तेरह वर्षकी थी तबसे ही उनको श्रीमद्भगवद्गीता एवं श्रीमद्भागवत महापुराण से लगाव हुआ । केवल तेरह वर्ष की आयु में ही पूज्य भाईश्री ने प्रथम बार श्रीमद्भगवद्गीता की कथा अपने ग्राम वासियों के समक्ष गायी ।
2) The Love for studying and being a seeker
पूज्य भाईश्री की बचपन से ही नई-नई पुस्तकें पढनेमें रुचि रही है इसीलिए उनको अपने अभ्यास के पुस्तकों के साथ अन्य शास्त्र एवं सद्ग्रंथ का भी अध्ययन करनेका अनोखा लगाव रहा है।
पूज्य भाईश्री ने केवल अठारह वर्ष की ही आयुमें स्वतंत्र रूप से प्रथम भागवत कथा का गुरुकृपा से गान किया।
3) The Lifelong Learnings from fellow Classmates
पूज्य भाईश्री के बाल्यकाल में उनकी पाठशाला के एक वरिष्ठ सहाध्यायी अपना पूरा समय गुरुजी की सेवा में ही बिताते थे। इसलिये उनको विद्याभ्यास का पर्याप्त समय नहीं मिलता था फिरभी वे परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते थे।
पूज्य भाईश्री ने अपने वरिष्ठ सहाध्यायी की इस सफलता का कारण बताते हुए कहाकी शिष्य की अदम्य गुरुनिष्ठा के कारण ही यह संभव हो सकता है।
बिना गुरु के केवल जानकारी मिल सकती है पर विद्या तो सद्गुरु की सेवा से ही मिलती है।
4) The love and energy for serving humanity
पूज्य भाईश्री ने बताया की उनकी डॉक्टर बनने की इच्छा के पीछे भी आशय तो मानव-सेवा का ही था। जैसे वे अभी कथाकार के रूप में कर रहे हैं।
पूज्य भाईश्री ने बताया की उनको ज्यादा संतोष एक कथाकार के रूप में मिला है। पूज्य भाईश्री कहते हैं की व्यास-पीठ के माध्यम से जो मार्गदर्शन हो रहा है उससे अनेकों को लाभ मिलता है, क्योंकि कथा भव रोग मिटाने वाली अमोघ औषधि है।
5) The Positivity booster in Life
जीवन अनेक प्रकार के रसों का संमिश्रण है इसलिए अच्छी-बुरी सभी घटनाओं में से मानव को अपने आप को आगे बढ़ाना होता है और तभी हमारा जीवन सम्पूर्ण रूप से परिपक्व बनता है।
पूज्य भाईश्री ने बताया की विपरीत परिस्थियों से उनको बहोत कुछ सीखने को मिला है। कथा और व्यासपीठ के आश्रय से विपरीत परिस्थियों को भी सकारात्मक रूप से देखने का दृष्टिकोण प्राप्त हुआ है इसिलए जीवन को बहोत लाभ हुआ है।
6) The Unforgettable Childhood Stories
पूज्य भाईश्री के बचपन की बात है। एक बार जब बस-स्टॉप पे किसीके पाँच रुपए गिर गए थे तब भाईश्री ने उसको देखा और पाया की उसको लेने के लिए वहाँ कोई था नहीं और पूज्य भाईश्री ने बालक बुद्धि से उसको अपने पास रख लिया और अपने मित्र के साथ सिनेमा देखने में उसको खर्च कर दिया।
बाद में उसी जगह पूज्य भाईश्री का एक्सीडेंट हुआ तब पूज्य भाईश्री को अनुभव हुआ की जो पाँच रुपए उसी जगह से पहले लिए थे ये उसीकी सजा उनको मिली है।
7) India: The Nation of Endless Possibilities
पूज्य भाईश्री के अभिगम से देखें तो राष्ट्रवाद से अधिक योग्य शब्द राष्ट्रभक्ति है।
पूज्य भाईश्री बार-बार कहते हैं,- “भारत अनंत संभावनाओं से भरा हुआ राष्ट्र है।“ उन संभावनाओं को वास्तविकता बनाने के लिए चार बातें मुख्य रूप से आवश्यक है।
1. धर्म को मानवतावादी धर्म बनाना होगा वर्तमान में वह केवल ईश्वरवादी है।
2. मूल्यनिष्ठ राजनीति का निर्माण होना चाहिए।
3. प्रजा को कठोर परिश्रम की भावना से पोषित करना होगा। वर्तमान समय में कई राजनितीज्ञों के द्वारा जो प्रजा में मुफ्तखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है उससे प्रजा की अस्मिता नष्ट होती है। प्रजा को भी ऐसी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली राजनीति को नकारना होगा। कठोर परिश्रम का कोई पर्यायी नहीं है।
4. सभी देश वासियों में कट्टर राष्ट्रभक्ति होनी ही चाहिए। हम सब देशवासी भले ही किसी भी धर्म के आश्रित हों या तो किसी भी राजनैतिक पक्ष के हों या तो किसी भी क्षेत्र में काम करते हों पर सबसे पहले हम भारतीय हैं।
हम सबको राष्ट्रहित को ही प्राधान्य देना होगा राष्ट्र से अधिक हमारे लिए कुछ नहीं ऐसी विचारधारा को दृढ़ता से अपनाना होगा।
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