कथा कम समज आये तो क्या करना चाहिए?

मैं कथामें तो बैठती हूँ पर नई हूँ और मुजे कम समज आता है | ऐसेमें मुजे क्या करना चाहिए?

सदा सेवन करो कथाका |

सदा सेव्या सदा सेव्या

श्रीमद्भागवती कथा |

स्कूलमें जब बच्चेको ले जाया जाता है तो वो बिलकुल नया ही होता है, बच्चेके लिए स्कूल नया है और स्कूलके लिए वो बच्चा नया है | तो कुछ समजमें नहीं आता स्वाभाविक रूपसे | लेकिन उपाय क्या है ? नियमित जाए स्कूल में और वो यदि विद्यालायमें जाएगा, ध्यानसे पढ़ेगा, जो समजाया जाता है, सिखाया जाता है वो सीखेगा, समजेगा; जहाँ समज नहीं आए वहाँ प्रश्न पूछेगा तो धीरे धीरे उसकी रूची भी पढ़ाईमें बढ़ने लगेगी और साथ-साथ सब समजमें भी आने लगेगा |

कथामें आप नए-नए आए है, आपका स्वागत | आप पहोंचे है, आपके सद्भाग्यकी भी हम प्रशंसा करते हैं |  धीरे धीरे सब बातें समजमें भी आएगी और साथ-साथ सत्संगमें आपकी अभिरूची भी बढती रहेगी |

ये दोनों चीजे साथ साथ जाती है | सत्संग में रूची बढती है, रूचीके बढ़ने से सातत्य, सातत्य रहने से रूचीका बढ़ना और इस सातत्य से और इस रूचीके चलते-चलते सत्संगमें प्रीती भी बहुत बढ़ने लगती है |

श्री रामचरितमानसमें भगवान रामने शबरीजीको नवधा भक्तिमें कहा है:

प्रथम भगति संतन कर संगा | दूसरी रति मम कथा प्रसंगा ||

ये रति कहते है दिनों-दिन बढ़ती रहनेवाली प्रीतिको | सातत्य रहें, ये बहुत आवश्यक है | इसलिए जहाँ-जहाँ रामचरितमानसमें भी सत्संग शब्द आया वहाँ साथ-साथ सदा शब्दको जोड़ा गया है |

दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग ।

भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग ॥

 बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग । पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग

श्रीमद्भागवतमें भी

सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा ||

इसका सातत्य बहुत आवश्यक है | भगवान् करें आपका सातत्य बना रहे और उससे आपकी रूची बढ़ेगी | रूची बढती रहेगी उससे सातत्य बना रहेगा और इस तरह से धीरे-धीरे सारी बातें समजमें आने लगेंगी और जैसे जैसे बातें समजमें आने लगेंगी आप और और स्वाध्याय करनेके लिए प्रेरित होंगे और फिर सब बढ़त-बढ़त बढ़ जाय |

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