मकर संक्रान्तिपर्वका हमारे देशमें विशेष महत्व है इस सम्बन्ध संत तुलसीदासजीने लिखा है 

माघ मकरगत रबि जब होई । तीरथपतिहि आब सब कोई (रा ० च ० मा ० १ ४४१३)   

कहा जाता है कि गङ्गा, यमुना और सरस्वतीके संगमपर प्रयागमें मकर संक्रान्तिपर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नानके लिये आते हैं अतएव वहाँ मकर संक्रान्तिपर्वके दिन स्नान करना अनन्त पुण्योंको एक साथ प्राप्त करना माना जाता है संक्रान्तिपर्व प्रायः प्रतिवर्ष १४ जनवरोको पड़ता है ।

  1. सूर्यका मकरराशिमें प्रवेश करना ‘ मकर संक्रान्ति ‘ कहलाता है । इसी दिनसे सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं । शास्त्रों में उत्तरायणकी अवधिको देवताओंकादिन तथा दक्षिणायनको देवताओंकी रात्रि कहा गया है । इस तरह मकर संक्रान्ति एक प्रकारसे देवताओंका प्रभातकाल है । इस दिन दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदिका अत्यधिक महत्व है । कहते हैं कि इस अवसरपर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है ।
  2. उत्तर प्रदेशमें इस व्रतको ‘ खिचड़ी ‘ कहते हैं । इसलिये इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ी – तिल दान देनेका विशेष महत्व मानते हैं ।
  3. महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियाँ पहली संक्रान्तिपर तेल , कपास , नमक आदि वस्तुएँ सौभाग्यवती स्त्रियोंको प्रदान करती हैं ।
  4. बंगालमें इस दिन स्नान कर तिल दान करनेका विशेष प्रचलन है । 
  5. दक्षिण भारतमें इसे ‘ पोंगल ‘ कहते हैं । 
  6. राजस्थानकी प्रथाके अनुसार इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियाँ तिलके लड्डू, घेवर तथा मोतीचूरके लड्डू आदिपर रुपया रखकर वायनके रूपमें अपनी सासको प्रणाम कर देती हैं तथा प्रायः किसी भी वस्तुका चौदहकी संख्या में संकल्प कर चौदह ब्राह्मणोंको दान करती हैं।

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