जिसने श्रीहरिके शरण ग्रहण किया है उसके लिए अलगसे किसी देवता क्या की उपासना ज़रूरी है?
जब हम यज्ञ-यागादि करते हैं तो हम अनेक देवताओंकी उपासना करते हैं, देवताओंका आवाहन करते हैं | इन्द्र है, वरुण है, अग्नि है, इत्यादि | देखों, महत्त्व तो आत्माका ही है उसी तरह महत्त्व तो परम चैतन्य परमात्माका ही है |
परन्तु, मुजे देखना है तो मुजे आँखकी जरुरत पड़ेगी और आँखके देव आँखमें हो ये भी जरुरी हो जायेगा | क्योंकि आँखके देव सूर्य आँखमें नहीं है तो आँख होते हुए भी मैं देख नहीं पाऊँगा | अब आँख भी हो, आँखके देव आँखमें हो लेकिन चैतन्य आत्मा न हो तो आँख देख न पाएगी | तो मुजे आँखकी भी उपासना करनी पड़ेगी | आँख गड़बड़ हो गई तो मुजे डॉक्टरके पास भी जाना पड़ेगा, मोतियाबिंद हो गया है तो उतारना पडेगा | नंबर लग गए है तो मुजे चश्मे लगाने पड़ेंगे; ये आँखकी उपासना हो गई कि नहीं?
उसी तरह मुजे सुनना है तो बिना चैतन्य आत्मा और इन्द्रियोंके तो सुन नहीं पाउँगा | वो तो तन बिनु कर्म करे बिधि नाना वो वाली बात है | हम जब सुनना चाहते है तो हमे कानकी जरुरत पड़ेगी और कानके दिशा देवताकी उपासना करना पड़ेगा | कान में कुछ गड़बड़ है तो उसकी भी चिकित्सा करानी पड़ेगी |
तो हमें अनन्य भावसे तो श्रीहरिकी ही उपासना करनी है | बिना श्रीहरिके कुछ नहीं होता | परब्रह्म परमात्मा, श्रीहरि, ही इस सृष्टिका अभिन्न-निमित्त-उपादान कारण है | परन्तु, वो अंग्रेजीमें कई ग्रन्थोंमें मैंने ऐसा पढ़ा है बाकि वाले देवतओंको डेमी गोड्स कहते है | तो हमारे वेदोंमें उन देवताओंकी उपासनाका भी विधान है | प्रकृतिके प्रत्येक तत्त्वमें देवभाव रखते हुए जलके देवकी उपासना , अग्नि देवकी उपासना सूर्य-चन्द्र इन दोनों ऊर्जाओंसे जहाँ सृष्टिका क्रम चल रहा है, उन देवोंकी उपासना, ये भी हमें करनी है | तो सौम्य-भैरव भगवान् से कुछ ऐसी कामना हो तो उसकी पूर्ति के लिए आप सौम्य-भैरव भगवान् की भी उपासना कर सकते है |
श्रीमद्भागवतके द्वितीय स्कन्धमें विभिन्न कामनाओंकी पूर्तिके लिए विभिन्न देवताओंकी उपासनाका स्पष्ट निर्देश है | लेकिन उसमें ऐसा भी बताया गया है कि जिसको मुक्ति चाहिए और यहाँ ये भी कहाँ गया:
कामो सर्वकामो वा मोक्षकामो उदारधी:
वो भगवान् श्रीहरिकी उपासना करे | तो हम श्रीहरिकी ही उपासना करते हैं और जिन-जिन देवतओंकी उपासना करते है, उन-उन रूपोंमें भी हम श्रीहरिकी ही उपासना करते हैं ये भाव रखे | भगवान् ने ही कहाँ है-
आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् |
सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रति गच्छति ||
आकाशसे बरसा हुआ पानी, पानीकी हर बूँदे, चाहे पहाड़ों पर गिरी, चाहे खेतोंमें, चाहे नदीयोंमें, अन्तमें वो जल समुद्रमें ही मिलता है | बस उसी प्रकार जिसकी भी उपासना करो, अन्तमें वो उपासना श्रीहरिकी ही है | ये भाव रखो | कानवाला डॉक्टर तुम्हारे आँख, नाक, कानकी चिकित्सा करता है, इसका मतलब यही हुआ कि वो तुम्हारी चिकित्सा कर रहा है | क्योंकि तुम उससे भिन्न नहीं हो |
बस उसी तरह ये सारे रूप वास्तवमें परमात्माके ही है | उन-उन देवताओ की हम उपासना करते है, अलग-अलग कामनाओंकी पूर्ति के लिए; बस उसी तरह अलग-अलग देवताओंकी अलग-अलग कामनाओंकी पूर्तिके लिए उपासना करो | लेकिन अन्तमें वो सब भगवान् श्रीहरिकी ही उपासना है | ऐसा भाव रखो और अनन्य भावसे श्रीहरिकी शरणमें रहो, श्रीहरिकी उपासना करते रहो |