श्रीसीताजी के पाँच विशेष गुण
– माता धरती से तीन गुण और पिता जनक से दो गुण
श्री रामचरितमानस में श्री तुलसीदासजी ने बड़ा ही प्यारा श्लोक लिखा है –
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।
जो उत्पत्ति, स्थिति और लय करनेवाली हैं, समस्त क्लेशों को हर लेनेवाली हैं,
सभी का कल्याण करनेवाली हैं ऐसी श्रीरामप्रिया माँ सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ ।
प्रायः ऐसा देखा गया है कि पुत्र हो या पुत्री के भीतर माता-पिता दोनों के गुण आते ही आते हैं ।
१) उत्पत्ति, २) स्थिति और ३) लय ये जो धरती माता के तीन गुण हैं वे गुण सीताजी के भीतर भी हैं।
श्रीसीता माताके पालक पिता महाराज जनकजी के दो गुण –
१) समस्त क्लेशों को दूर करना और
२) सभी का कल्याण करना ये जो दो गुण है वे श्रीजनकजी से श्रीसीताजी को प्राप्त हुए हैं ।
१. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में उत्पत्ति का गुण
जैसे कि हम देखते हैं कि सभी वनस्पतियाँ फल ,औषधियाँ, मूल सब धरती माता से ही उत्पन्न होते हैं और उनसे हमारा पोषण होताहै । तो धरती माता की उत्पत्तिशक्ति और पालनशक्ति उनका तो हम अनुभव करते ही हैं और अगर एक मिनिट के लिए भूचाल आगया तो संहारशक्ति के दर्शन हो ही जाते है।
सीता चरित्र में उदाहरण
श्रीसीतामाता के भीतर भी ये तीन गुण देखने को मिलते हैं जब श्रीरामचंद्रजी को मनाने के लिए समस्त अयोध्यावासी चित्रकूट आएतो श्रीसीताजी की तीनों सास (राज माता कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा) भी वहाँ आई थीं। उनकी सेवा करने के लिए श्रीसीताजीनेअपने ही भीतरसे ओर रूप बनाए और सभी सास की समान आदरपूर्वक सेवा की है ।
सिय सांसु प्रति वेश बनाई ,सादर करई सरिश सेवकाई ।
लखा न मरमुं राम बिनउ गावो, माया सब सिय माया मोहो ।
सीताजी की जो यह लीला थी वह लीला माया केवल रामचन्द्रजी ही जान सके और कोई न जान सका । विश्वकी समस्त मायाश्रीसीताजी की माया के भीतर ही निहित है । तो यह है उत्पत्तिवाला गुण ।
२. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में स्थिति (पालन) का गुण
पालनवाला गुण उनका दर्शन करना है तो जब अयोध्या से सब बाराती आते हैं जनकपुर में तो सबके निवासस्थान में अच्छी सुविधाके लिए सीताजी अनेक सिद्धियों का आवाहन करते हैं और आज्ञा करते हैं कि जो बाराती आए हैं उनका अच्छे से स्वागत करो, उनकाअच्छा पालन-पोषण करो, उनकी सेवा करो सीताजी ने जैसे आज्ञा करी कि –
सिद्धि सब आयसु
उनकी गई जहां जनबासल्ये ।
संपदा सकल सुखा सुरपुरभोग विलास।
जहाँ बाराती रुके थे उनके निवास स्थान से वहाँ पर सब सिद्धियाँ, सुख, संपत्ति, भोग कैसा भोग ? जो भोग स्वर्ग में देवता भोगतेहैं, ऐसे भोगों को लेकर सभी सिद्धियाँ बारातियों का स्वागत करने, उनका अच्छा पोषण करने के लिए जानकीजी की आज्ञा से गईहैं। तो यहाँ पालन का गुण भी देखने को मिलता है ।
३. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में लय (संहार) का गुण
और संहार गुण वैसे लौकिक दृष्टि से संहार और अलौकिक दृष्टि से रावणादि राक्षसों का उद्धार भी श्रीसीताजी के कारण ही हुआ है।
सुंदरकांड में श्रीविभीषण कहते हैं।
काल रात्रि निसिचर कुल केरि।
तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।
रावण को समझाते हुए भी विभीषणजी कहते हैं कि यह जो जानकीजी है वह राक्षसों के लिए कालरात्रि है। तो यहाँ संहार का गुणभी है और सभी क्लेशों को दूर करना, सबका कल्याण करना, ये दो लीला श्रीसीताजी ने परोक्षरूप से की है। आप सोचो अगरसीताजी का अपहरण न होता तो ?
१. राजा जनक से पुत्री सीता में सबका कल्याण करने का गुण
कहीं पर माँ शबरी की बुड्ढी आंखें भगवान श्रीरामचंद्रजी के दर्शन की प्रतीक्षा कर रही थी, कहीं पर बैठे थे निराश सुग्रीव, कहीं परश्री हनुमानजी के बल और पराक्रम भगवान रामचंद्रजी की सेवा करने के लिए प्रतीक्षा में खड़े थे और कहीं पर लंका में विभीषणजीभगवान राम नाम का जप करते हुए यही सोच रहे थे मुझे श्रीराम के दर्शन कब होंगे?
ऐसे अनेक भक्तों का कल्याण हुआ, अनेक क्लेश दूर हुए; केवल और केवल श्री सीताजी का अपहरण हुआ उनके कारण ही। तो परोक्षरूप से भी क्लेशों को दूर करना और सबका कल्याण करना यह दो गुण सीताजी में है।
२. राजा जनक से पुत्री सीता में क्लेश दूर करने का गुण
श्रीआनन्दरामायण में करुणा की भण्डार श्री सीताजी की बहुत ही रोचक कथा है।
एक बार श्रीसीता माता को इच्छा हुई और भगवान श्रीरामचंद्र जी से कहा कि मुझे अयोध्या का बाजार देखना है ।भगवान ने कहाठीक है तो राजमहल के एकदम ऊपर के स्थल पर एक झरोखे से भगवान रामचंद्रजी सीताजी को सब दिखा रहे थे। यह रास्ता इधरजाता है, यहाँ पर वस्त्र बेचे जाते हैं, यहाँ पर सब्जियों का व्यापार होता है इत्यादि सब रामचंद्रजी बता रहे थे ।अयोध्या के ऐश्वर्य कोदेखते समय सीताजी की नजर पड़ी एक गरीब स्त्री के ऊपर।
दूर से ही सीताजी ने देखा एक स्त्री अति गरीब है और उसके पास एक बच्चा है वो रो रहा है। स्त्री की ऐसी दुर्दशा है कि उनके अंगपर आभूषण नहीं, अच्छे वस्त्र नहीं तो माँ सीता अति दुःखी हुई और अपनी एक दासी को बुलाया और कहा देखो वह जो स्त्री है, उनके पास जाओ और आदर समेत बुलाकर लाओ। उनको बुलाने के लिए दासी गई वह जो याचिका थी दुःखी स्त्री वह आई। माँसीताजी ने पूछा है बहन क्या दुख है ?
तुम्हारी इतनी दुर्दशा क्यों? शरीर पर एक अच्छा वस्त्र नहीं है, अच्छा आभूषण नहीं है, इसका कारण क्या है? तो वह जो स्त्री थीवह बोली मेरे जो पतिदेव है वह लंबे समय से तीर्थयात्रा में गये है। अभी तक लौटे नहीं। मैं अपने पिताजी के पास थी परंतु अब तोपिताजी का भी शरीर शांत हो गया। हालांकि मेरा भाई है परंतु कोई मेरा पालक पोषक नहीं है। अब मैं अयोध्या में अपने बच्चे केसाथ घूमती हूँ, भिक्षा मांगती हूँ और जैसे-तैसे करके मेरा गुज़ारा चल रहा है ।
सीताजी को यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ और तुरंत अपने कुछ आभूषण उतार कर उस स्त्री को दे दिए इतना ही नहीं कुछ वस्त्र भी देदिए और कहा तुम अभी के अभी श्रीलक्ष्मीजी के पास जाओ और उनको कहो सीताजी ने कहा है एक लाख स्वर्ण मुद्राए दान में दीजाए। तुमको एक लाख सोने के सिक्के प्राप्त होंगे।
सीताजीका हदय कितना विशाल, कितना उदार कि इतना ही नही और अपनी दूसरी दासी को भेजा और तुम अभी के अभी जाओऔर श्रीलक्ष्मणजी को कहो कि पूरी अयोध्या में और अयोध्या के सिवा भी अन्य जो राज्य हैं, पूरी पृथ्वी में जितने भी राष्ट्र हैं, सातद्वीपों में जहाँ पर भी राज्य है, वहाँ की प्रजा बिना अच्छे वस्त्रों के, बिना अच्छे आभूषणों से न घूमे। सबके पास अच्छे वस्त्र होनेचाहिए, सबके पास अच्छे आभूषण होने चाहिए। अगर कोई भी अच्छे वस्त्र, अच्छे आभूषणों के बिना दिखाई देगा तो उसका दंड उसराज्य के राजा को भुगतना पड़ेगा। भगवान रामचंद्रजी साक्षात् उसे दंड देंगे। सीताजी ने लक्ष्मणजी के माध्यम से यह सूचनादिलवाई ।
सीताजी के भीतर सबके क्लेशों को दूर करनेवाला जो गुण है, सबका कल्याण करनेवाला जो गुण है, वह गुण जनकजी से आया हैऐसा लगता है, क्योंकि यह तो राजा के गुण होते हैं, सबका कल्याण करना, सब के दुखों को दूर करना।
हम भी सीताजी से यही विनंती करते हैं माँ सीता हमें भी आपका यह गहना दे दो! आप का आभूषण दे दो! श्रीसीताजी का आभूषणक्या है ? भगवान रामचंद्रजी के जो आदर्श हैं, वे भी हमारे जीवन में आए; यदि हम सीता जी से प्रार्थना करें और इसके साथ पुराविश्व कोरोना की महामारी से मुक्त हो यह विशेष प्रार्थना करें।
सभी को श्रीसीतामाता के प्रागट्योत्सव की बहुत-बहुत बधाई हो ।जय श्री कृष्ण।
स्वाध्याय प्रसाद : ऋषि भाविनभाई जोषी
लेखन : ऋषिकुमार यौवनभाई पांड्या