Which three strategies would you give to live life? | जीवन जीने की तीन युक्तियाँ क्या है?

Three strategies to live life

जीवन जीने की तीन युक्तियाँ क्या है?

According to our Dharma, which three strategies would you give us to live life?

In the various religions in the world, not all accept the existence of God. Many religions do not accept the existence of God such as Jainism, Buddhism and Sāṃkhya darshan. The Sāṃkhya in Bhāgavat contains God. Otherwise there is no God in Sāṃkhya darshan. It talks of the soul and creation.

However, whether you accept God or not, you will have to accept Dharma.

Dharma bhajasva satata dharmea hinā pashuvi samānā

If Dharma does not exist in a human being’s life, then the human being will not remain human. It will become animal-like. All other animals’ live life as influenced by nature.

Prakti yānti bhutāni nigraa kim kariyati

If a lion in the forest becomes hungry, it will not think that is holding a fast or killing deers is violence and a sin. The lion does not have this understanding. As it is carnivorous, when it is hungry, it hunts animals to satiate its hunger. This is its habitual state.

The human being has an intellect. The more intelligent it is, the more cautious it needs to be. Human being is not only a jewel, but also a violator of this earth. The greater one’s intelligence, the greater the requirement for control. In accepting these controls lies the well-being of the intelligent. Such wise people can also lead to the welfare of the world. Thus, Dharma is extremely important.

One power is Dharma; the second is society; the third is nation. In combination, these three powers control the intelligent human being for its welfare. This is Dharma.

According to Sanatan Dharma, if I want to say three things, then the 3 cantos in our Sanatan Vedic Dharma: Karmakāṇḍa (path of actions), bhakti (devotion) – upāsana kāṇḍa and jñān kāṇḍa (path of knowledge). These are the three strategies.

In Bhagavad Gita also you find these paths, each in six chapters: karma (deeds/actions), bhakti (devotion) and jñān (knowledge).

1. Actions

You have been given a body then continue to perform actions. If you are intelligent then learn from scriptures and Vedas how to perform these actions. Perform actions as prescribed by Vedas and scriptures.

Dharma say teaches us: what to do, what not to do, actions that result in wellbeing and actions that cause damage to us as well as others. This understanding has been given in our scriptures. Until the body exists, no being can live without performing actions even for a moment.

God says in Gita:

Na hi kaścita kana api jātu tiṣṭhatya karma kita                                          SBG 3.5

Now that we are bound to act, then the understanding of types of actions that must be performed, is for our well-being. After understanding this, perform actions recommended by scriptures and Vedas and live for 100 years whilst performing these actions.

Kurvannevea karmāṇi jijivishe chhatam samāhāthis is what Vedas have said.

So firstly, continue to perform actions. Do not be inactive. Like God says in Gita:

Mā te sangostva karmai

Do not be careless and lazy. Sleep is necessary but you sleep to awaken. I want to sleep for six hours because I want to be awake for 18 hours and act. Actions is food for your body. The mind needs love and the body needs exercise.

Hence, Vinobaji used to say that where two words ending with ‘m’ are supreme: śram (hard work) and prem (love), this is known as a āśram jīvan (holy life). However old you are, you are living in an āśram because you will be in one of the following stages of life: Brahmacharya āśram (celibacy), ghastha āśram (householder), vānaprastha āśram (ascetic), or sanyāsa āśram (renunciation). Not only should a hermit be filled with love and compassion, but he/she also requires the appropriate exercise in the body.

So firstly, perform actions, be active, do not be inactive.

2. Devotion

Secondly devotion means love for the entire world. Become a lover. Hatred and malice are poison whilst love is nectar. So, let us become lovers.

Devotion is attachment but towards God. According to Śrimad Bhāgavat, devotion is a mother who gives birth to knowledge and renunciation. One attains renunciation towards mortal things in life. When we become attached towards mortal, material pleasures, then this attachment leads to great damage. Thus, if there is attachment, let it be for God. This is known as devotion.

Sā parānu raktirishvare – as said by Shāndalya Mahārāj in Shāndalya Bhakti Sutra.

Let there be devotion, love.

3. Knowledge

Thirdly, let our intellect be enlightened. Let us not remain foolish. Let us be knowledgeable. Learn and understand plenty. Stay at the refuge of Guru. Learn from Gurus (teachers) and respect them. Gain both spiritual and worldly knowledge.

Dve vidye veditavye.

Understand both worldly and spiritual knowledge. Meaning, learn regarding the world and how to behave as well as live in the world. Become a doctor, lawyer, engineer etc. However, at the same time, learn knowledge of the absolute, which leads to your spiritual progress and improves your next world. Thus, become enlightened through knowledge.

Hence, actions, devotion and knowledge, these three strategies explained to us in our Sanatan tradition are the essence in life. If these three are present in our life, then we are complete.

हमारे धर्म अनुसार जीनेके लिए आप हमें कौन सी तीन युक्तियाँ दे सकते हैं ?

जितने धर्म है उनमें सभी धर्म ईश्वरका स्वीकार करके चलनेवाले नहीं है | कई धर्म है जो ईश्वरका स्वीकार नहीं करते है, जैसे Jainism, Buddhism, सांख्य-दर्शन | भागवतका सांख्य सेश्वर है | नहीं तो सांख्य-दर्शन भी निरीश्वर है | उसमें प्रकृति और पुरुषकी बात है |

परन्तु ईश्वरका स्वीकार करो या ना करो, धर्मका स्वीकार तुम्हें करना होगा |

धर्मं भजस्व सततं धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः 

यदि मनुष्यके जीवनमें धर्म नहीं रहा तो मनुष्य, मनुष्य नहीं रहेगा | पशुवत् हो जाएगा | बाकि सभी जो प्राणी है, वो प्रकृतिके प्रेरित होकर जी रहे है |

प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ।। श्री. भ. गी ३.३३ ।।

जंगलके शेरको भूख लगती है तो वो ये थोड़ी  ना सोचता है कि आज मेरी एकादशी है और उपवास करना है या मृगोंको मारना ये हिंसा है – पाप है | ये समज शेरकी नहीं है | उसको तो भूख लगती है और मांसाहारी प्राणी है तो अपनी प्रकृतिके अनुसार प्राणियोंका शिकार करके अपना पेट भरना, ये उसकी स्वाभाविक प्रकृति है | बाकि सारे प्राणी प्रकृतिके वशीभूत होकर के जीते है, चलते है |

मनुष्यके पास बुद्धि है और जितनी उसके पास बुद्धि है उतना ही उसको सावधान रहेने की आवश्यकता है | इसलिए मैं कहा करता हूँ कि मनुष्य इस धरतीका भूषण भी है और मनुष्य ही इस धरतीके लिए दूषण भी है | जिसमें जितनी बुद्धि ज्यादा, उसको उतने ही अन्य नियंत्रणोंकी आवश्यकता रहती है | उन नियंत्रणोंको स्वीकार करें,उसीमें उस बुद्धिमानका मंगल है | इन प्रकारके नियंत्रणोंका स्वीकार करके बुद्धिको सही मार्ग पे चलानेवाले ऐसे बुद्धिमान पुरुष विश्वका भी भला कर सकते है | अतः धर्म बहुत आवश्यक है |

एक शक्ति है धर्म, दूसरी है समाज और तीसरी है सरकार | उसके मंगलके लिए राज्यसत्ता, समाजसत्ता और धर्मसत्ता, ये तीनों सताएँ मिलकरके बुद्धिमान मनुष्य प्राणीको नियंत्रित करती है | ये धर्म है |

हमारे सनातन धर्मके अनुसार यदि कोई तीन बात मुजे कहनी हो, जो हमारे सनातन वैदिक धर्ममें जो तीन काण्ड है, कर्मकांड,  भक्ति(उपासना) काण्ड और ज्ञानकाण्ड | तो यही तीन बात है | भगवद्गीतामें भी छ:-छ: अध्यायके ये तीन काण्ड है, कर्म, भक्ति और ज्ञान

1. कर्म

तुम्हें शरीर मिला है तो कर्म करते रहो और बुद्धिमान हो तो तुम्हें कैसे कर्म करने चाहिए वो शास्त्रोंसे, वेदोसे, हमारी स्मृतियाँ से सीखो | अतः वेदविहित कर्म करें |

धर्म क्या कहता है ? कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है | क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, क्या करनेसे कल्याण होता है, क्या करनेसे हम अपना और औरोंका नुक्सान करेंगे, इसकी समज हमारे शास्त्रोंमें दिया गया है | जबतक देह है तो कोई भी देहधारी प्राणी बिना कर्मके एक क्षण भी रह नहीं सकता | गीतामें भगवान कहते है-

न हि कश्चित्क्षणमपि  जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।। श्री. भ. गी ३.५ ।।

जब कर्म करना हमारी बाध्यता है तो फिर किस प्रकारके कर्म करना चाहिए ये समजना ही मंगलकारी है और उसे समजनेके बाद शास्त्रविहित – वेदविहित कर्म करते रहो और कर्म करते हुए सो वर्ष पर्यंत जिओ |

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः। (ईशोपनिषद्-१.२)

ये जो वेदोंने कहा है | एक तो कर्ममें लगे रहो, अकर्मण्य मत बनो जैसे भगवान गीतामें कहते है-

मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।। श्री. भ. गी २.४७ ।।

प्रमाद ना हो, आलस्य ना हो | निद्रा जरुरी है लेकिन जागनेके लिए सोना है तुम्हें | मुजे इसलिए छः घंटा सोना है की मुजे अठारह घंटा जागना है और कर्म करना है | कर्म तुम्हारे शरीरकी खुराक है |

मनको चाहिए प्रेम और तुम्हारे तनको चाहिए श्रम | इसलिए विनोबाजी कहते थे कि मकारान्त इन दो शब्दोंका जहाँ प्रभुत्व हो श्रम और प्रेम, उसको कहते है आश्रम-जीवन | आप जिस भी उम्रमें हो आश्रममें ही जी रहे है | या ब्रह्मचर्याश्रम हो, या गृहस्थाश्रममें हो, या वानप्रस्थाश्रम में हो, या संन्यासाश्रम में हो | हर आश्रममें श्रम और प्रेम  | संन्यासीको भी शरीरके लिए जितना आवश्यक है उतना श्रम करना है | प्रेम और करुणासे भरे रहना है | एक तो कर्म करें, कर्मठ रहें, अकर्मण्य ना बने |

2. भक्ति

दूसरी बात भक्ति | भक्ति यानि समग्र सृष्टिके प्रति प्रेम | समष्टि के प्रति प्रेम, प्रेमी बनो | घृणा, नफरत, द्वेष ये सब जहर है | प्रेम अमृत है | भक्ति अमृत है | हम प्रेमी बने |

तीसरी बात है-ज्ञान | जब प्रेमी बनोगे, भक्ति होगी तो श्रीमद्भागवतके अनुसार तो भक्ति ऐसी माता है जो वैराग्य और ज्ञान दो पुत्रोंको जन्म देती है | संसारके नश्वर पदार्थोंके प्रति वैराग्य | भक्ति आसक्ति ही है, लेकिन भगवानमें | जब हम नश्वर भोगोंके प्रति आसक्त हो जाते है तो वो आसक्ति बहुत उपद्रव करती है | अतः आसक्ति  हो तो भगवान् में | उसीको भक्ति कहते है |

सा परानुरक्तीरीश्वरे |

3. ज्ञान

भक्ति हो, प्रेम हो और तीसरी बात ज्ञान | हमारी बुद्धि प्रकाशित हो | हम बुद्धु ना रहे हम बुद्ध, प्रबुद्ध और ज्ञानी बनें | बहुत सीखो, बहुत समजो, गुरु-चरणोंमें रहो | गुरुओंसे सीखो, गुरुओंका आदर करो | परा और अपरा दोनों प्रकारकी विद्याको प्राप्त करो |

द्वे विद्ये वेदितव्ये

परा और अपरा ये दोनों विद्याको समजना चाहिए | यानि इस संसारसे और व्यवहारसे सम्बंधित जो बातें है वो भी तुम्हें सीखना चाहिए, डॉक्टर बनना चाहिए, वकील बनना चाहिए, इंजीनियर बनना चाहिए,M.B.A करो B.B.A करो लेकिन साथ साथ परा विद्या, जिससे तुम्हारा आध्यात्मिक विकास हो सके,  तुम्हारा  परलोक भी सुधरे इस तरहसे परा विद्याको भी महत्त्व दो | और वो भी सीखो | ज्ञानसे प्रबुद्ध बनो |

कर्म, भक्ति और ज्ञान ये जो तीन बातें हमारे सनातनी परम्परामें हमको समजाया गया है, सार रूपमें बस यही तीन है |

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