Tulsi Vivah

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Devi Tulsi’s Sacred Matrimonial Ceremony to Shri HariDevī Tulsī is a pious devotee of Lord ShriHari; and according to the Devī Bhāgavata Purāṇa, She is also the wife of ShriHari.On the auspicious day of Tulsī Vivāha, we celebrate the sacred matrimonial ceremony of Shri Hari (in the form of Śāligrāma Bhagavāna) to Devi Tulsī—celebrated during the five days from Ekādaśī till Kārtika Pūrṇimā.What does the Marriage of…
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Shri Hanuman Jayanti 2022

Click here to join ShriHari Mandir on Saturday 16th April 2022 for Shri Hanuman Jayanti celebrations online. आज हनुमान जयंतीके अवसर पर जानते है कि हनुमानजीकी ठुड्डी (हनु) असामान्य क्यों है ?मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।कथा :-श्रीरामावतारके समय ब्रह्माजीने देवताओंको वानर और भालुओंके रूपमें पृथ्वी पर प्रकट होकर श्रीरामजीकी सेवा करनेका…
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Rath Saptami Mahima

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– Details of Surya Narayan from Shrimad Bhāgavat Lord Surya Narayan is considered the Soul of this Universe; that highest reality (Brahma) manifests as Ishvara and then as Bhagavan. The very same Omnipresent Lord has manifested in the form of the Svaroop in the Mandir, explains Pujya Bhaishri Rameshbhai Oza.The Upanishads explain how a soul…
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Vasant Panchmi Mahima

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वसन्त पञ्चमी (माघ शुक्ल पञ्चमी)(पर्व देवता – सरस्वती देवी/विष्णु भगवान्)ग्रन्थ :- व्रतविधानम्माघ मासकी शुक्ल पक्षकी पंचमीको वसन्त पंचमीका पर्व मनाया जाता है। यह दिन ऋतुराज वसन्तके आगमनकी सूचना देता है। इस दिन भगवान विष्णु तथा सरस्वतीका पूजन किया जाता है। वसन्त पंचमीके दिन घरोंमें केसरिया चावल बनाएँ जाते हैं तथा पीले कपड़े पहने जाते हैं।…
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Apara Ekadashi Vrat Katha

Aparā Ekādaśī ⚫ ShriHari Mandir (Porbandar) is celebrating this Aparā Ekādaśī fast on Sunday, 6th June, 2021.⚫ This fast is observed on the eleventh day of the second fortnight (Krṣṇa pakṣa) of the month of ‘Jyeṣṭha’ in the Northern part of India, and of the month of ‘Vaiśākha’ in the Gujarat region.⚫ Śrī Krṣṇa explains…
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Seven Statements from Prahalada Stuti

-Narsimha Jayanti The manifestation of Lord Narasiṃha from a pillar as half-Lion and half-man, is a glorious testament to the firm faith of His exalted devotee Prahalāda. What are some of the remarkable sentiments in his hymn of praise (stutī) that reveal his unique character (caritra), just as a flower is known by its fragrance?  1 Devotion- The…
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श्रीसीताजी के पाँच विशेष गुण

– माता धरती से तीन गुण और पिता जनक से दो गुण श्री रामचरितमानस में श्री तुलसीदासजी ने बड़ा ही प्यारा श्लोक लिखा है – उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।।जो उत्पत्ति, स्थिति और लय करनेवाली हैं, समस्त क्लेशों को हर लेनेवाली हैं,सभी का कल्याण करनेवाली हैं ऐसी श्रीरामप्रिया माँ सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ ।प्रायः ऐसा देखा गया है कि पुत्र हो या पुत्री के भीतर माता-पिता दोनों के गुण आते ही आते हैं ।१) उत्पत्ति, २) स्थिति और ३) लय ये जो धरती माता के तीन गुण हैं वे गुण सीताजी के भीतर भी हैं। श्रीसीता माताके पालक पिता महाराज जनकजी के दो गुण –१) समस्त क्लेशों को दूर करना और२) सभी का कल्याण करना ये जो दो गुण है वे श्रीजनकजी से श्रीसीताजी को प्राप्त हुए हैं ।१. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में उत्पत्ति का गुण जैसे कि हम देखते हैं कि सभी वनस्पतियाँ फल ,औषधियाँ, मूल सब धरती माता से ही उत्पन्न होते हैं और उनसे हमारा पोषण होताहै । तो धरती माता की उत्पत्तिशक्ति और पालनशक्ति उनका तो हम अनुभव करते ही हैं और अगर एक मिनिट के लिए भूचाल आगया तो संहारशक्ति के दर्शन हो ही जाते है।सीता चरित्र में उदाहरण श्रीसीतामाता के भीतर भी ये तीन गुण देखने को मिलते हैं जब श्रीरामचंद्रजी को मनाने के लिए समस्त अयोध्यावासी चित्रकूट आएतो श्रीसीताजी की तीनों सास (राज माता कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा) भी वहाँ आई थीं। उनकी सेवा करने के लिए श्रीसीताजीनेअपने ही भीतरसे ओर रूप बनाए और सभी सास की समान आदरपूर्वक सेवा की है ।सिय सांसु प्रति वेश बनाई ,सादर करई सरिश सेवकाई ।लखा न मरमुं राम बिनउ गावो, माया सब सिय माया मोहो ।सीताजी की जो यह लीला थी वह लीला माया केवल रामचन्द्रजी ही जान सके और कोई न जान सका । विश्वकी समस्त मायाश्रीसीताजी की माया के भीतर ही निहित है । तो यह है उत्पत्तिवाला गुण ।२. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में स्थिति (पालन) का गुणपालनवाला गुण उनका दर्शन करना है तो जब अयोध्या से सब बाराती आते हैं जनकपुर में तो सबके निवासस्थान में अच्छी सुविधाके लिए सीताजी अनेक सिद्धियों का आवाहन करते हैं और आज्ञा करते हैं कि जो बाराती आए हैं उनका अच्छे से स्वागत करो, उनकाअच्छा पालन-पोषण करो, उनकी सेवा करो सीताजी ने जैसे आज्ञा करी कि – सिद्धि सब आयसुउनकी गई जहां जनबासल्ये ।संपदा सकल सुखा सुरपुरभोग विलास।जहाँ बाराती रुके थे उनके निवास स्थान से वहाँ पर सब सिद्धियाँ, सुख,  संपत्ति, भोग कैसा भोग ?  जो भोग स्वर्ग में देवता भोगतेहैं, ऐसे भोगों को लेकर सभी सिद्धियाँ बारातियों का स्वागत करने, उनका अच्छा पोषण करने के लिए जानकीजी की आज्ञा से गईहैं। तो यहाँ पालन का गुण भी देखने को मिलता है ।३. पृथ्वी माता से पुत्री सीता में लय (संहार) का गुणऔर संहार गुण वैसे लौकिक दृष्टि से संहार और अलौकिक दृष्टि से रावणादि राक्षसों का उद्धार भी श्रीसीताजी के कारण ही हुआ है।सुंदरकांड में श्रीविभीषण कहते हैं।काल रात्रि निसिचर कुल केरि।तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।रावण को समझाते हुए भी विभीषणजी कहते हैं कि यह जो जानकीजी है वह राक्षसों के लिए कालरात्रि है। तो यहाँ संहार का गुणभी है और सभी क्लेशों को दूर करना, सबका कल्याण करना, ये दो लीला श्रीसीताजी ने परोक्षरूप से की है। आप सोचो अगरसीताजी का अपहरण न होता तो ?१. राजा जनक से पुत्री सीता में सबका कल्याण करने का गुणकहीं पर माँ शबरी की बुड्ढी आंखें भगवान श्रीरामचंद्रजी के दर्शन की प्रतीक्षा कर रही थी, कहीं पर बैठे थे निराश सुग्रीव, कहीं परश्री हनुमानजी के बल और पराक्रम भगवान रामचंद्रजी की सेवा करने के लिए प्रतीक्षा में खड़े थे और कहीं पर लंका में विभीषणजीभगवान राम नाम का जप करते हुए यही सोच रहे थे मुझे श्रीराम के दर्शन कब होंगे? ऐसे अनेक भक्तों का कल्याण हुआ, अनेक क्लेश दूर हुए; केवल और केवल श्री सीताजी का अपहरण हुआ उनके कारण ही। तो परोक्षरूप से भी क्लेशों को दूर करना और सबका कल्याण करना यह दो गुण सीताजी में है।२. राजा जनक से पुत्री सीता में क्लेश दूर करने का गुणश्रीआनन्दरामायण में करुणा…
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श्रीपरशुरामजी जयंती

दशावतार में छठे अवतार हैं श्रीपरशुरामजी। कुछ व्यावहारिक संबंधो को जोड़कर कुछ चर्चा करेंगे। जैसा की गीताजी में कहा गया है कि –“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।और रामचरितमानस में भी कहा है कि –जब जब होई धरम के हानि,बाढहिं असुर अधम अभिमानी।समाजमें जब जब कोई भी धर्म से च्युत हो तो लोगोंमें…
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Significance of Akshaya Tritiya

Four Meritorious Deeds for Imperishable ResultsWhat are the numerous benefits, rewards and imperishable merits that one may reap, by making a charitable contribution on the auspicious lunar date called ‘Akṣaya Tṛtīya’?Medicinal Donation (Auśadī Dāna) Source: Varāha Purāṇa:One who pledges to provide facilities or vital requirements for the ill, unhappy or those seeking shelter; such as, medicine,…
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Significance of Akshaya Tritiya

Five Milestones Marked by this Lunar DateThis third day of the bright half of the lunar month is a milestone which holds significance for various reasons—It marks the commencement of the second in the four ages—called the ‘catura-yugi’ or cycle of Time—called the Tretā Yuga. The Lord is attained through Yagña in this period, and…
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